1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह था या राष्ट्रीय विद्रोह? – EdusRadio

1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह था या राष्ट्रीय विद्रोह? इसके विषय में भिन्न-भिन्न लोगों ने अपने मत दिए। वास्तव में इस आंदोलन की प्रकृति के विषय में विद्यानों पर्याप्त मतभेद है कुछ इसे मात्र सैनिक विद्रोह मानते हैं तथा कुछ ” भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम” इसे चाहे किसी भी नाम से जाना जाए पर यह वह ऐतिहासिक कदम था जिसने प्रत्येक भारतीय के हृ स्वतंत्रता प्राप्ति की प्यास जगा दी थी।

1. 1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह था –  

अंग्रेज इतिहासकारों ने इस मत पर विशेष जोर दिया उनके अनुसार यह शुद्ध रूप से एक सैनिक विद्रोह था जो चर्चा याते कारतूसों के प्रयोग से उत्पन्न असंतोष के कारण फैला । इसके पीछे प्रमुख तर्क निम्न हैं। 

(i) यह भारत के सम्पूर्ण भागों में ना फैलकर क्षेत्र विशेष तक सीमित था तथा इसमें जनता की कोई विशेष भूमिका नहीं थी। 

(ii) भारतीय नरेशों के शामिल होने के व्यक्तिगत कारण थे वे ही शासक इस विद्रोह में शामिल हुए अंग्रेजों की नीति के कारण जिन्हें हानि उठानी पड़ी थी; जैसे- झाँसी की रानी, नाना साहब बहादुरशाह जफर। 

(iii) कई भारतीय नरेशों ने इस विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों की सहायता की तथा कुछ रियासतों को छोड़कर शेष ने पक्ष या विपक्ष में कोई सक्रियता नहीं दिखायी।

 (iv) कृषक वर्ग और आम जनता ने इसमें कोई हिस्सा नहीं लिया यदि सम्पूर्ण भारतीय जनता इस विद्रोह में सक्रियता निभाती तो अंग्रेजी सेना द्वारा उसे दबाया जाना आसान नहीं था। 

2. यह भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था- 

डॉ. पन्नीकर, सावरकर जैसे आधुनिक भारतीय विचारकों के अनुसार यह विद्रोह ” भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” था। अपने कथन के समर्थन में वे इस प्रकार के तर्क प्रस्तुत करते हैं।

 (i) अन्याय और असंतोष की ज्वाला पिछले कई दशकों से भारतीयों के हृदय में सुलग रही थी। चर्बी वाले कारतूस तो बहाना मात्र थे इस आग के धधकने के लिए। वास्तव में तो अंग्रेजों की नीतियों से तंग आए भारतीय गुलामी की जंजीरों से स्वतंत्र होना चाहते थे। चर्बी वाले कारतूसों की घटना ने इस भावना के प्रस्फुटन का एक मौका पैदा कर दिया था। 

(ii) हिंदू और मुसलमान दोनों ने अपने-अपने मतभेद भुलाकर इस क्रांति में भाग लिया। अंग्रेजों के धार्मिक आधार पर भारतीय प्रजा की विभाजन की नीति के बावजूद इस स्वतंत्रता संग्राम में दोनों की भावनाएँ तथा उद्देश्य समान थे।

 (iii) यह विद्रोह बेशक सैन्य विद्रोह के रूप में प्रारम्भ हुआ किंतु अन्य लोगों ने भी इस क्रांति में भाग लिया चाहे राजा हो या प्रजा जिसका दिल देश प्रेम में डूबा था वह इस क्रांति में कूद पड़ा। लोगों ने जी खोलकर इस क्रांति में आर्थिक सहायता दी किंतु कुछ जयचंदों ने फिर देश से गद्दारी की कुछ कायर निष्क्रिय होकर तमाशा देखते रहे। कुछ स्वार्थी और अवसरवादियों ने अपने हित साध्य किए और इस स्वाधीनता संग्राम को कुचलने में अंग्रेजों का साथ दिया।

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