अकबरनामा और बादशाहनामा क्या है? (What is Akbarnama and Badshahnama?) इसके बारे में हमने नीचे विस्तार से बताया है, कृपया नीचे दिए लेख को ध्यानपूर्वक पड़ें!
अकबरनामा क्या है? (What is Akbarnama)
इस ग्रंथ की रचना अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल द्वारा की गई थी। ‘अबकरनामा‘ का महत्वपूर्ण चित्रित इतिहासों में प्रमुख स्थान है। अबुल फजल ने ‘अबकरनामा‘ के लेखन कार्य को 1589 ई. में आरंभ किया। यह लेखन कार्य तेरह वर्षों तक अर्थात् 1589 ई. से 1602 ई. तक चलता रहा। इस में इस ग्रंथ के प्रारूप में अनेक संशोधन किये गए। अकबरनामा की विषयवस्तु के प्रमुख आधार घटनाओं के वास्तविक विवरण, शासकीय दस्तावेज तथा जानकार व्यक्तियों के मौखिक प्रमाण जैसे विभिन्न प्रकार के साक्ष्य हैं। अकबरनामा तीन जिल्दों में विभक्त है। पहली दो जिल्दें इतिहास और तीसरी आइन-ए-अकबरी है। पहली जिल्द में आदम से लेकर सम्राट अकबर के जीवन के एक खगोलीय काल चक्र तक (30 वर्ष) के मानव जाति के इतिहास का विवरण दिया गया है। दूसरी जिल्द में अकबर के शासनकाल के 46 वें वर्ष तक का इतिहास है। यह जिल्द यहीं पर समाप्त हो जाती है। अगले ही वर्ष अर्थात् 1602 ई. में अबुल फजल शहजादा सलीम के षड्यंत्र का शिकार हो गया। सलीम के सहयोगी वीरसिंह बुन्देला ने उसकी हत्या कर दी। अबुल फजल की मृत्यु के बाद इनायत उल्लाह ने ‘तकमील ए अकबरनामा‘ लिखकर इस ग्रंथ को पूरा किया।
‘अकबरनामा‘ को राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण घटनाओं के समय के साथ विवरण देने के पारंपरिक ऐतिहासिक दृष्टिकोण से लिखा गया है। इसके लेखन में एक नवीन विधि का भी प्रयोग किया गया जिसके अनुसार तिथियों एवं समय के साथ होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख किये बिना ही अकबर के साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक एवं सांस्कृतिक सभी पक्षों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। हमें याद रखना चाहिए ‘आइन-ए-अकबरी’ जो अकबरनामा की तीसरी जिल्द है, में मुगल साम्राज्य का प्रस्तुतिकरण भिन्न-भिन्न आबादी वाले तथा मिश्रित संस्कृति वाले साम्राज्य के रूप में किया गया, जिसमें हिन्दू, जैन, बौद्ध, मुसलमान सभी रहते थे। अबुल फज़ल की भाषा अत्यधिक अलंकृत थी। इस भाषा में लय और कथन शैली को अत्यधिक महत्व दिया जाता था, क्योंकि इस भाषा के पाठों की ऊँची आवाज में पढ़ा जाता था। इस भारतीय फारसी शैली को राजदरबार में संरक्षण दिया गया था।
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बादशाहनामा क्या है? (What is Badshahnama)
इस ग्रंथ की रचना मुगल सम्राट शाहजहाँ के शासनकाल में की गई थी। इसका लेखक अबुल फजल का एक शिष्य अब्दुल हमीद लाहौरी था। मुगल सम्राट शाहजहाँ ने उसकी विद्वता एवं योग्यता से प्रभावित होकर उसे ‘अकबरनामा‘ के नमूने पर अपने शासन का इतिहास लिखने के लिए नियुक्त किया था। ‘अकबरनामा’ के समान बादशाहनामा भी सरकारी है। इसकी तीन अथवा दफ्तर है प्रत्येक जिल्द में दस चंद वर्षों का विवरण दिया गया है। लाहौरी ने पहली और दूसरी जिल्दों में बादशाह के शासनकाल के पहले दो दशकों अर्थात् 1627-47 ई. के काल के इतिहास का विवरण दिया है। कालांतर में शाहजहाँ के वजीर सादुल्ला खाँ द्वारा इन जिल्दों में संशोधन किये गए। वृद्धावस्था के कारण लाहौरी तीसरे दशक इतिहास को लिखने में समर्थ नहीं हो सका। तीसरी जिल्द का लेखन कार्य बाद में मुहम्मद वारिस द्वारा किया गया।
अंग्रेज प्रशासकों के लिए औपनिवेशिक काल में अपने साम्राज्य के लोगों और संस्कृतियों को भली-भाँति समझने के लिए भारतीय इतिहास का अध्ययन और उपमहाद्वीप के विषय में ज्ञान प्राप्त करना अति आवश्यक था। अतः इस उद्देश्य से वे अभिलेखागारों की स्थापना करने लगे। 1784 ई. में सर विलियम जोन्स ने ‘एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल’ की स्थापना की। सोसाइटी ने अनेक भारतीय पाण्डुलिपियों के संपादन प्रकाशन और अनुवाद का उत्तरदायित्व संभाला। एशियाटिक सोसाइटी ने 19 वीं शताब्दी में सबसे पहले ‘अकबरनामा’ और ‘बादशाहनामा’ के संपादित पाठांतर प्रकाशित किए। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में हेनरी बेवरिज ने वर्षों के अथक प्रयासों के बाद ‘अकबरनामा’ का अंग्रेजी अनुवाद किया। ‘बादशाहनामा’ को इसके संपूर्ण रूप में अभी तक अंग्रेजी में अनुवादित नहीं किया जा सका है। अभी तक इसके केवल कुछ ही अंशों का अंग्रेजी में अनुवाद किया जा सका है।
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