औद्योगिक क्रांति क्या है?
18 वीं शताब्दी के मध्य इंग्लैण्ड में एक क्रांति हुई। जिसने पहले उस देश को फिर सारे यूरोप की और अन्त में संपूर्ण विश्व की काया पलट दी। वह क्रांति किसी अत्याचारी शासन-व्यवस्था के खिलाफ नहीं थी, उसमें किसी राजा का सिर नहीं काटा गया न किसी को अपने सिंहासन का परित्याग करने के लिए विवश किया गया और न किसी प्रकार के आंतक राज्य की स्थापना की गयी। फिर भी उसके जितने गंभीर और दूरगामी परिणाम हुए उतने उसके पहले किसी राजनीतिक सामाजिक क्रांति के नहीं हुए थे। इस क्रांति ने मनुष्य के उत्पादन के उपकरणों (औजारों) और तरीकों में आमूल परिवर्तन कर दिया । इसीलिए उसे औद्योगिक क्रांति कहते हैं ।
इस क्रांति के पूर्व मनुष्य अपने जीवन निर्वाह के लिए जिन चीजों का भी उत्पादन करता अन्न, वस्त्र आदि उन सबमें उसे अपने शारीरिक श्रम का ही प्रयोग करना पड़ता था या कुछ कामों में वह पशुओं की शक्ति से भी काम ले लेता था। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप मनुष्य की शारीरिक शक्ति का स्थान बहुत कुछ मशीनों ने ले लिया, पहले मशीनों को चलाने के लिए मनुष्य अपनी शारीरिक शक्ति का ही प्रयोग करता था, किन्तु आगे चलकर उसके स्थान पर भाप, तेल और फिर बिजली आदि का प्रयोग होने लगा। पहले यह क्रांति इंग्लैण्ड में आरंभ हुई और फिर वहाँ से सारे यूरोप और विश्व में फैल गई । औद्योगिक, क्रांति किसी समय समाप्त नहीं हुई। वह एक अनन्त प्रक्रिया सिद्ध हुई, जो आज भी चल रही है और आगे भी निरन्तर चलती रहेगी। निरन्तर नए अविष्कार हो रहे हैं जिनका जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है।
औद्योगिक क्रांति की परिभाषा
एन्साइक्लोपिडिया ऑफ सोशल साइन्सेज खण्ड आठ में औद्योगिक क्रांति की परिभाषा इस प्रकार की गई है- “वह आर्थिक एवं शिल्प वैज्ञानिक (टेक्नोलॉजीकल) विकास जो 18 वीं शताब्दी में अधिक सशक्त एवं तीव्र हो गया था जिसके फलस्वरूप आधुनिक उद्योगवाद का जन्म हुआ, जिसे औद्योगिक क्रांति कहा जाता है।”
एडवर्ड ने औद्योगिक क्रांति की परिभाषा निम्न प्रकार से की है- “औद्योगिक प्रणाली तथा श्रमिकों के स्तर में होने वाले परिवर्तनों को ही औद्योगिक क्रांति की संज्ञा दी जाती है।’
हैज के शब्दों में, “ 18 वीं शताब्दी में जो क्रांतिकारी परिवर्तन इंग्लैण्ड के उद्योग धंधों में हुए और जिनको बाद में यूरोपीय देशों में अपना लिया, उनको औद्योगिक क्रांति कहा जा सकता है। ”
औद्योगिक क्रांति शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1837 ई. में फ्रांस के समाजवादी नेता लुई ब्लांकी ने किया था। यूरोपीय विद्धानों जैसे मिशले व जर्मनी में फ्राइड्रिक एंजेल्स द्वारा किया गया। अंग्रेजी में इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम दार्शनिक व अर्थशास्त्री आरनॉल्ड टायनबी द्वारा उन परिवर्तनों का वर्णन करने के लिए किया गया जो ब्रिटेन के औद्योगिक विकास में सन् 1760 और सन् 1820 के बीच हुए थे। इस दौरान ब्रिटेन में जार्ज तृतीय का शासन था। जिसके बारे में टायनबी ने आक्सफोर्ड विश्व विद्यालय में कई व्याख्यान दिए थे। उनके व्याख्यान उनकी असामायिक मृत्यु के बाद, सन् 1884 एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुए, जिसका नाम था लेक्चर्स ऑन दि इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैण्ड ।
पापुलर एड्सेस, नोट्स एंड अदर फ्रैग्मेंट्स (इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति पर व्याख्यान, लोकप्रिय अभिभाषण, टिप्पनियाँ और अन्य अंश) ।
परवर्ती इतिहासकार टी. एस. एश्टन पाल मंतू और एरिक हॉब्सबाम मोटे तौर पर टायनवी के विचारों से सहमत थे सन् 1780 के दशक से सन् 1820 के दौरान कपास और लौह उद्योगों, कोयला खनन, सड़कों और नहरों के निर्माण और विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति हुई। एश्टन सन् (1889-1968) ने तो इस औद्योगिक क्रांति का उत्सव मनाया, जब इंग्लैण्ड छोटी-छोटी मशीनों और कलपुर्जों की बाढ़ से मानों अप्लावित हो गया।
इंग्लैण्ड ही क्यों – ब्रिटेन प्रथम देश था जिसने सबसे पहले आधुनिक औद्योगीकरण का अनुभव किया था, यह वीं शताब्दी से राजनीतिक दृष्टि से सुदृढ़ एवं संतुलित रहा था और इसके तीनों हिस्सों इंग्लैण्ड, वेल्स और स्कॉटलैण्ड 17 पर एक ही राजतंत्र यानी सम्राट का एक छत्र शासन रहा। इसका अर्थ यह हुआ कि सभी राज्यों में एक ही कानून, एक ही मुद्रा प्रणाली एवं एक ही बाजार प्रणाली थी। इस बाजार व्यवस्था में स्थानीय प्राधिकरणों को भी रोकना था। मतलब, वे अपने इलाके से होकर जाने वाले माल पर कोई कर नहीं लगाते थे, जिससे कि उसकी कीमत बढ़ जाती। सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक मुद्रा का प्रयोग विनिमय यानी अदान-प्रदान था। तब तक कई लोग अपनी कमाई, वस्तुओं की बजाय मजदूरी व वेतन के रूप में पाने लगे। वस्तुओं की बिक्री के लिए बाजार का विस्तार होने लगा।
18 वीं शताब्दी के आते-आते इंग्लैण्ड को एक बहुत बड़े आर्थिक परिवर्तन से गुज़रना पड़ा। जिसे बाद में ‘कृषि क्रांति’ कहा जाता है इस प्रकिया में जमीदारों ने अपनी ही संपत्तियों के आस-पास के छोटे खेत (फार्म) खरीद लिए व गाँव की सार्वजनिक जमीनों को घेर लिया, और बड़ी-बड़ी भू-संपदाएँ बना ली जिससे खाद्य उत्पादन की वृद्धि हुई। इससे भूमि-हीन किसान व चरवाहों को अन्यत्र काम पर जाना पड़ा। कई लोग आस-पास के शहरों में बसने लगे।
इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति के कारण
- इंग्लैण्ड की भौगोलिक स्थिति- इंग्लैण्ड चारों ओर से समुद्र से घिरा है उसके सामुद्रिक तट कटे-फटे हैं अत: वहाँ बंदरगाह आसानी से बनाया जा सकता था जो माल वे तैयार करते थे शीघ्र बन्दरगाह पहुँच जाता था और खुला समुद्र होने से बिना किसी बाधा के दूसरे देशों में पहुँच जाता था। वहाँ की जलवायु कपड़े के उत्पादन के योग्य, कोयला व लोहे की खानें, योग्य नदियाँ आदि साधन उपलब्ध थे। इन सुविधाओं ने इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति को जन्म दिया।
- खनिज भण्डार— इंग्लैण्ड में लोहे व कोयले की खदानें पास-पास थे, जिसके फलस्वरूप पक्का लोहा बनाने व लोहे की मशीनें बनाने में काफी सुविधा होती थी। यहाँ लोहे एवं कोयले के पर्याप्त भण्डार थे जिसका उपयोग कारखानों में वस्तुओं के उत्पादन हेतु किया जा सकता था ।
- शक्तिशाली समुद्री बेड़ा- अन्य देशों से कच्चा माल लाने तथा तैयार माल दूसरे देशों में ले जाने के लिए इंग्लैण्ड के पास एक शक्तिशाली बेड़ा था। जिसमें बाह्य आक्रमणों का सामना करने की भी क्षमता थी। समुद्री मार्गों में इंग्लैण्ड का एकाधिकार था तथा नौसैनिक दृष्टि से यूरोप में वह सबसे ज्यादा शक्तिशाली था ।
- पूँजी के आसान स्रोत- इंग्लैण्ड में पूँजीपतियों एवं समृद्ध व्यापारियों की कमी नहीं थी। वे औद्योगिक विकास एवं बड़े-बड़े कारखाने लगाने के लिए सदैव अधिक मात्रा में पूँजी लगाने के लिए तैयार रहते थे।
- वस्तुओं की खपत हेतु बाजार – 18 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में इंग्लैण्ड ने एक विशाल औपनिवेशिक साम्राज्य का निर्माण कर लिया था। इंग्लैण्ड में बनी हुई वस्तुओं को वह आसानी से इन उपनिवेशों के बाजारों एवं मण्डियों में खपा सकता था तथा यहाँ से सस्ते दर पर कच्चे माल भी प्राप्त कर सकता था।
- शक्ति के साधन – इंग्लैण्ड में शक्ति के साधनों की भी कमी नहीं थी। पानी और कोयले के आपार स्रोत वहाँ उपलब्ध थे। इंग्लैण्ड ने ही भाप की शक्ति का अविष्कार किया था।
- सस्ते मजदूर – कृषि औजारों में अभूतपूर्व उन्नति होने के कारण अब कृषि मजदूर बेकार हो गये थे। इसलिए इंग्लैण्ड में सस्ते मजदूरों की बाढ़ सी आ गई थी। अतः इनको उत्पादन कार्य में आसानी से लगाया जा सकता था।
- सरकार द्वारा संरक्षण की नीति अपनाना- इंग्लैण्ड में सरकार की नीति उद्योग, व्यापार और कृषि विकास को बढ़ावा देने की थी, संरक्षणवादी नीति से भी औद्योगिक उत्पादन को प्रोत्साहन मिला।
- सुविकसित बैंकिंग प्रणाली – इंग्लैण्ड में बहुत पहले बैंकों की स्थापना हो चुकी थी। सुविकसित बैंकिग प्रणाली के फलस्वरूप वहाँ के उद्योगपतियों को ऋण और पूँजी संबंधी कई सुविधाएँ मिल गई।
- जनसंख्या में वृद्धि – इंग्लैण्ड में 18 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में 40% तथा 19वीं सदी के प्रथम तीन दशकों में 50% जनसंख्या में वृद्धि हुई, जनसंख्या वृद्धि होने से वस्तुओं की माँग में वृद्धि हुई। जिससे उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के प्रयास किये। इस तरह जनसंख्या की वृद्धि ने भी औद्योगिक क्रांति को प्रोत्साहन दिया।
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