अवसादी चट्टान क्या है?
अंग्रेजी भाषा का “Sedimentary” शब्द लैटिन भाषा के “Sedimentum” शब्द से लिया गया है, जिसका तात्पर्य- ‘नीचे बैठना’ होता है । अपक्षय एवं अपरदन के विभिन्न साधनों के द्वारा आग्नेय चट्टानों की टूट-फूट से प्राप्त अवसाद स्थान से दूसरे स्थान पर जमा होता रहता है। इस प्रकार लगातार एक परत के बाद दूसरी परत का जमाव होता रहता है, अतः भार बढ़ता जाता है फलस्वरूप विभिन्न परतें संगठित होने लगती हैं तथा अन्त में अवसादी या परतदार चट्टान की रचना पूर्ण हो जाती है। अवसादी चट्टानों का जमाव एक निश्चित क्रम में होता है। पहले सबसे बड़े कणों का जमाव होता है तत्पश्चात् महीन कणों का जमाव होता रहता है। अवसादी चट्टान को जलज चट्टान भी कहा जाता है, अर्थात् जल से बनी हुई चट्टान, परन्तु यह आवश्यक नहीं है, क्योंकि इसका निर्माण स्थल पर अपरदन के विभिन्न कारकों यथा-पवन, हिमानी आदि द्वारा भी सम्पन्न होता है। पृथ्वी के ऊपरी धरातल का लगभग 80% भाग अवसादी चट्टानों से ढँका है, किन्तु इसका आयतन भू-पटल के सम्पूर्ण आयतन का लगभग 5% ही है।
अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण निम्न दो आधारों पर किया जाता है-
(अ) संरचना के आधार पर –
संरचना की दृष्टि से अवसादी चट्टानों को निम्नलिखित प्रमुख भागों में विभक्त किया जाता है-
- बालू प्रधान चट्टानें – इन चट्टानों में बालू तथा बजरी की अधिकता होती है। इन चट्टानों में रन्ध्रता अधिक होती है, जिस कारण जल आसानी से प्रविष्ट होकर नीचे चला जाता है, क्योंकि अधिकांश पातालीय कुएँ बालू प्रधान चट्टान वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं। बालू का पत्थर ऐसी चट्टानों में प्रमुख है ।
- चीका मिट्टी प्रधान चट्टानें- इन चट्टानों में चीका मिट्टी की प्रधानता होती है। चट्टान चूर्ण के बारीक कणों के निक्षेपण से चीका शैल का निर्माण होता है। ये चट्टानें मुलायम, किन्तु अप्रवेश्य होती है। इन चट्टानों के अप्रवेश्य स्वभाव के कारण ही अधिकांश विश्व तेल भण्डार इन्हीं चट्टानों के ऊपर पाया जाता है। शैल चट्टान इस वर्ग के चट्टानों में मुख्य है।
- कांग्लोमरेट या संगुटिकाश्म – इन चट्टानों का निर्माण प्रायः सिलिका द्वारा संयुक्त होने पर होता है। फलस्वरूप ये चट्टानें अत्यधिक कठोर एवं अपरदन के लिए अवरोधक होती हैं। साधारणतः इन कणों का व्यास 4 मिलीमीटर होता है तथा बड़े-बड़े पत्थर का व्यास 256 मिलीमीटर तक होता है। 4. कार्बन प्रधान चट्टानें इन चट्टानों में कार्बन तत्वों की प्रधानता होती है। इनका निर्माण वनस्पति एवं जीव- – जन्तुओं के मिट्टी में दब जाने से अवशेष रूप में होता है। कोयला, ऑइल, शैल इसी प्रकार बनते हैं ।
- चूना प्रधान चट्टानें – चट्टानों का निर्माण प्रायः सागरों में होता है, क्योंकि जल में घुले हुए चूने एवं चूना प्रधान जीव-जन्तुओं के अवशेष सागरों में ही पाये जाते हैं। चूने का पत्थर, डोलोमाइट आदि इसी प्रकार की चट्टानें हैं। इन चट्टानों का सर्वाधिक उपयोग सीमेन्ट बनाने में किया जाता है।
- रासायनिक क्रियाओं के द्वारा निर्मित अवसादी चट्टानें – खारी झीलों तथा लैगूनों में जल वाष्प बनकर उड़ – जाता है, तो लवण आदर्श अवस्थाओं में चट्टान के रूप में जम जाता है। इन चट्टानों का संगठन प्राय: सोडियम क्लोराइड तथा कैल्शियम सल्फेट से होता है। जिप्सम, चट्टानी नमक तथा शोरा (Nitrate) इस प्रकार के चट्टानों के उत्तम उदाहरण हैं ।
(ब) उत्पत्ति के आधार पर अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण –
इन चट्टानों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से है-
- नदी निर्मित चट्टानें – पर्वतीय क्षेत्र से नदियाँ अपने साथ बड़े कणों वाला मलबा बहाकर लाती हैं तथा इसे – पर्वतपादीय क्षेत्र में निक्षेपित कर देती हैं। आगे बढ़ने पर ये नदियाँ अपेक्षाकृप कणों वाले मलवे को बहाती हुई तटीय भाग में निक्षेपित करती जाती है। ये नदियाँ अत्यन्त बारीक कणों वाले मलवे को बहाकर अपने अंतिम भाग ( किसी झील या सागर) में निक्षेपित करती है। जैसे- भारतीय उपमहाद्वीप में सिन्धु गंगा का जलोढ़ मैदान ।
- हिम नदीय चट्टानें– हिम नदियाँ अपने साथ अनेक प्रकार का हिमोढ़ (अवसाद) बहाकर लाती है तथा उसे निक्षेपित करती है। गोलाश्म तथा मृत्तिका संगठित होकर चट्टानों की रचना करते हैं।
- सागरीय चट्टानें – सागर में नदियाँ अवसाद का निरन्तर निक्षेपण करती रहती है। सागरीय तरंगें भी अपरदन द्वारा अवसाद का जमाव करती रहती है। इस निक्षेपित पदार्थ के दबाव के कारण कालान्तर में कठोर चट्टानें निर्मित हो जाती हैं, जैसे- बलुआ पत्थर वायूढ़ चट्टानें- पवन द्वारा निक्षेपित अवसाद से परतदार चट्टानों की रचना होती हैं, जैसे- लोएस ।
- सरोवरीय चट्टानें – सरोवर तथा झीलों में निक्षेपित अवसाद से निर्मित चट्टानें हैं। कश्मीर की घाटी में इस प्रकार की चट्टानें पायी जाती हैं।
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अवसादी चट्टानों के लक्षण या विशेषताएँ
- अवसादी चट्टानें परतों में पाई जाती हैं।
- इन चट्टानों में रवे (Crystals) नहीं पाये जाते हैं बल्कि जीवाश्म (Fossils) पाये जाते हैं।
- अन्य चट्टानों की अपेक्षा ये चट्टानें अधिक कोमल होती हैं।
- सामान्यतः ये चट्टानें सरन्ध्र तथा पारगम्य होती हैं।
- अवसादी चट्टानों का भू-तल पर क्षैतिज विस्तार बहुत अधिक है, किन्तु अत्यधिक गहराई में इनका अभाव है। इन चट्टानों के कण कोमल होने के कारण क्षैतिज संचलन से इनमें वलन पड़ जाते हैं।
अवसादी चट्टानों का महत्व –
- इन चट्टानों में आर्थिक महत्व वाले खनिज कम पाये जाते हैं
- अवसादी चट्टानों में लौह अयस्क, फॉस्फेट, कीमती पत्थर, कोयला तथा चूना पत्थर एवं खनिज तेल उपलब्ध होता है।
- इन चट्टानों में बॉक्साइड, मैग्नीज तथा टिन आदि महत्वपूर्ण खनिज पाये जाते हैं।
- उपजाऊ मिट्टियाँ भी अवसादी चट्टानों के अनाच्छादन से निर्मित होती हैं, जैसे- जलोढ़ मिट्टी।
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