जनसंख्या संक्रमण क्या है? जनसंख्या संक्रमण के अवस्थाएं

यह सिद्धांत जनसंख्या वृद्धि का नवीनतम सिद्धांत है । इस सिद्धांत द्वारा इस तथ्य पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है कि किसी देश की जनसंख्या के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास का स्तर उस देश की जनसंख्या वृद्धि को निर्धारित करता है। यह सिद्धांत यह बताता है कि पिछड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों, निर्धन व्यक्तियों तथा ग्रामीण क्षेत्रों की प्रजननता की दरें विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों, सम्पन्न व्यक्तियों तथा शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक रहती हैं। जैसे- जैसे किसी देश की अर्थव्यवस्था में आधुनिकीकरण होता जाता है, वैसे-वैसे उस देश के जनांकिकी प्रतिरूपों में अन्दर आता जाता है।

जनसंख्या संक्रमण क्या है?

जनांकिकीविद् इसे जनसंख्या चक्र (Population cycle) तथा भूगोलवेत्ता इसे जनसंख्या संक्रमण की संज्ञा देते हैं। जनांकिकीय संक्रमण से सम्बन्धित सिद्धांत का प्रतिपादन सर्वप्रथम 1929 में डब्ल्यू. एस. थाम्पसन ने किया था जिसे 1945 में फ्रैंक डब्ल्यू. नोटेस्टीन ने संशोधित किया था। सामान्यतः यह सिद्धांत जनसंख्या परिवर्तन के इतिहास को बताता है। नोटेस्टीन ने इसकी तीन अवस्थाएँ बतायी है जबकि सी. पी. ब्लैकर (C.P. Blacker ) ने पाँच अवस्थाएँ बतायी है जिसकी विवरण नीचे दिया जा रहा है-

(i) उच्च अचल अवस्था, (ii) प्रारम्भिक वृद्धि वाली अवस्था, (iii) विलम्ब में वृद्धि वाली अवस्था, (iv) निम्न अचल अवस्था, (v) ह्रास होती हुई अवस्था ।

जनांकिकीय संक्रमण का मूल आधार जन्म-दर, मृत्यु-दर तथा इनके अन्तर के कारण जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि है। इसे मूल रूप में डब्ल्यू. एस. थॉम्सन ने 1929 में प्रस्तुत किया और 1945 में फ्रैंक डब्ल्यू. नेटोस्टीन नामक जनांकिकीयविद् ने संशोधित किया। मोटे तौर पर जनांकिकीय संक्रमण की परिकल्पना जनांकिकीय परिवर्तनों को दर्शाती है । जब एक कृषि प्रधान ग्रामीण समाज प्रौद्योगिकी आधारित नगरीय समाज में बदलता है, तब जनांकिकीय प्रवृत्तियों में भी परिवर्तन होता है। ये परिवर्तन अवस्थाओं में होते हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से जनांकिकीय चक्र के रूप में जाना जाता है।

जनांकिकीय या जनसंख्या संक्रमण के अवस्थाएं

प्रथम अवस्था — इस अवस्था में उच्च प्रजननशीलता (जन्म-दर) कारण यह है कि लोग महामारियों तथा भोजन की अनिश्चित आपूर्ति से होने वाली मृत्यु को क्षतिपूर्ति अधिक पुनरुत्पादन से करते हैं। जनसंख्या वृद्धि धीमी होती है और अधिकांश लोग खेती में कार्यरत होते हैं, जहाँ बड़े परिवारों को परिसंपत्ति माना जाता है। जीवन- प्रत्याशा निम्न होती है. अधिकांश लोग अशिक्षित होते हैं और उनके प्रौद्योगिकी स्तर निम्न होते हैं। 200 वर्ष पूर्व विश्व के सभी देश इसी अवस्था में थे।

द्वितीय अवस्था – इस अवस्था के प्रारंभ में प्रजनन- शीलता उच्च स्तर पर बनी हुई होती है, परंतु समय बीतने के साथ यह घटती जाती है। यह अवस्था घटी हुई मृत्यु दर के साथ आती है। स्वास्थ्य सेवाओं तथा स्वच्छता में उन्नति होने के साथ मृत्यु दर में गिरावट आती है। अतः जन्म दर अधिक तथा मृत्यु दर कम होने से जनसंख्या बढ़ी तेजी से बढ़ती हैं।

तृतीय अवस्था – यह अन्तिम अवस्था है, जिसमें जन्म- दर तथा मृत्यु दर दोनों ही कम होते हैं। जनसंख्या या तो स्थिर हो जाती है या मंद गति से बढ़ती है। जनसंख्या नगरीय और शिक्षित हो जाती है तथा उसके पास तकनीकी ज्ञान होता है। ऐसी जनसंख्या विचारपूर्वक परिवार के आकार को नियंत्रित करती है। वर्तमान में विभिन्न देश जनांकिकीय संक्रमण की विभिन्न अवस्थाओं में हैं।

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