खनन पृथ्वी की पपड़ी से मूल्यवान खनिज, संसाधन या सामग्री निकालने की प्रक्रिया है। ये संसाधन सोने और चांदी जैसी कीमती धातुओं से लेकर कोयला, नमक और यहां तक कि हीरे जैसी रोजमर्रा की वस्तुओं तक कुछ भी हो सकते हैं। खनन कई उद्योगों की रीढ़ है और यह हमें विभिन्न उत्पादों और ऊर्जा स्रोतों के लिए आवश्यक कच्चा माल उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
खनन किसे कहते हैं? (What is mining)
भू-गर्भ से प्राकृतिक अवस्था में स्थित खनिजों को खुदाई करके प्राप्त करना खनन कहलाता है। खनन व्यवसाय मानवीय सभ्यता का आधार माना जाता है। प्रारम्भिक अवस्था में खनिजों का प्रयोग सीमित था। मानव सभ्यता में इन खनिजों का इतना महत्त्व था कि ऐतिहासिक युगों के नाम इनके आधार पर ही रखे गये। प्रागैतिहासिक काल में मानव औजार तथा हथियार बनाने के लिए पत्थरों का प्रयोग करता था। अतः यह काल पाषाण युग कहलाया। इसके बाद धीरे-धीरे मानव ने धातुओं का प्रयोग करना प्रारम्भ किया। इनमें सम्भवत: ताँबा ही सबसे पहले प्रयोग किया गया था। इनके प्रयोग के साथ की ताम्र युग व कांस्य युगों का आविर्भाव हुआ। कांस्य युग के बाद लौह युग आया जिसका स्थान अब इस्पात युग (Steel Age) ने ले लिया है।
खनन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Mining)
खनन को निम्नलिखित दो प्रकार के कारक प्रभावित करते हैं-
- भौतिक कारक- इनमें निक्षेपों के आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की व्यवस्था को सम्मिलित किया जाता है।
- आर्थिक कारक – इन कारकों में खनिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूँजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाले व्यय सम्मिलित हैं।
खनन की विधियाँ (Mining Methods)
सामान्यतः खनन के लिए दो विधियाँ अपनाई जाती हैं जो खनिज की उपस्थिति की अवस्था तथा अयस्क की प्रकृति पर आधारित हैं।
- धरातलीय खनन विधि – इसे विवृत खनन के नाम से भी पुकारा जाता है। इस विधि को उन खनिजों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो भूतल के निकट ही कम गहराई पर पाए जाते हैं। यह सबसे सस्ती विधि है, क्योंकि इस विधि में सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत कम होता है एवं उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है।
- भूमिगत विधि – इसे कूपकी खनन (Shaft Mining) भी कहते हैं। यह विधि उन खनिजों के लिए प्रयोग की जाती है, जो अधिक गहराई पर पाए जाते हैं। इस विधि में लंबवत् कूपक गहराई तक स्थित होते हैं, जहाँ से भूमिगत गैलरियाँ खनिजों तक पहुँचने के लिए फैली होती हैं। इन मार्गों से होकर खनिजों का निष्कर्षण एवं परिवहन धरातल तक किया जाता है। खदान में कार्य करने वाले श्रमिकों तथा निकाले जाने वाले खनिजों के सुरक्षित और प्रभावी आवागमन हेतु इसमें विशेष प्रकार की लिफ्ट बेधक (बरमा), माल ढोने की गाड़ियाँ तथा वायु संचार प्रणाली की आवश्यकता होती है। खनन का यह तरीका जोखिम भरा है, क्योंकि जहरीली गैसें, आग एवं बाढ़ के कारण कई बार दुर्घटनाएँ होने का भय रहता है। झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश तथा कुछ अन्य राज्यों में कोयले की खानों में आग लगने या बाढ़ आने की अनेक दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं।
विश्व के प्रमुख खनिज
विश्व में अनेक खनिज पाये जाते हैं जिन्हें भिन्न-भिन्न उपयोगों में लाया जाता है। ये खनिज किसी एक स्थान पर नहीं पाये जाते हैं बल्कि अलग-अलग खनिज अलग-अलग देशों में पाये जाते हैं। प्रमुख खनिज और उनके उत्पादक देश भिन्न हैं-
- लोहा – इसके मुख्य उत्पादक रूस, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा भारत आदि है ।
- ताँबा – इसके मुख्य उत्पादक वोलविया, मेक्सिको, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा आदि है
- मैंगनीज – यह रूस, भारत, ब्राजील, जर्मनी आदि देशों से मिलता है ।
- सोना – यह दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, भारत, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में पाया जाता है।
- टिन – यह मलेशिया, इण्डोनेशिया, म्यांमार, चीन, थाइलैण्ड आदि देशों में प्राप्त होता है ।
- कोयला – यह रूस, भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम आदि देशों में प्राप्त होता है।
- खनिज तेल – यह सऊदी अरब, इराक, ईरान, कुवैत, म्यांमार, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, इण्डोनेशिया आदिमें मिलता है ।
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