ग्रामीण बस्तियाँ क्या है?
ग्रामीण बस्तियाँ मूलतः भूमि एवं कृषि, पशुपालन एवं प्राथमिक क्रियाओं से अधिक संबंधित रहती है। ग्रामीण बस्तियाँ प्राय: छोटे आकार की होती है तथा ये कम जनसंख्या वाली ग्रामीण बस्तियाँ है । ग्रामीण बस्तियों को मुख्यतः जल- – आपूर्ति, भूमि का स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा अन्य कारण प्रभावित करते हैं ।
जल आपूर्ति-
जल मानव जीवन के लिए अनिवार्य है और बस्तियाँ नदियों, झीलों, झरनों जैसे जल के स्त्रोतों के – निकट ही स्थापित की जाती है ताकि इनसे बस्ती के निवासियों को जल सुगमता से उपलब्ध हो सकें। इन जलाशयों से पीने, नहाने, खाना बनाने, वस्त्र धोने, सिंचाई, मत्स्य पालने आदि के लिए जल का प्रयोग किया जाता है। कभी-कभी पानी की आवश्यकता लोगों को असुविधाजनक स्थानों; जैसे- दलदल से घिरे द्वीपों अथवा नदी किनारों के निचले क्षेत्रों में बसने के लिए प्रेरित करती है ।
भूमि –
बस्तियाँ बसाने के लिए लोग उपजाऊ भूमि को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि उपजाऊ भूमि कृषि को बढ़ावा देती है। प्राचीनकाल में सभी बस्तियाँ नदी घाटियों की उपजाऊ भूमि पर स्थापित की गई थी। यूरोप में दलदलों एवं निचली भूमियों में नहीं, बल्कि ढलवाँ मैदानी भागों में बस्तियाँ बसाई जाती है। इसके विपरीत दक्षिणी-पूर्वी एशिया में नदी घाटियों के निम्न भागों एवं तटवर्ती मैदानों के निकटवर्ती भागों में बस्तियाँ बनाई जाती है, क्योंकि ये भाग चावल की कृषि के लिए बहुत ही उपयोगी होते हैं ।
उच्च भूमि के क्षेत्र –
नदी बस्तियों के निम्न क्षेत्रों में बस्तियों को नदी वेदिकाओं तथा तटबंधों जैसी उच्च भूमियों पर बसाया जाता है, ताकि बाढ़ के प्रकोप से बचा जाए और जन-धन की हानि को रोका जा सके। उष्ण कटिबंधीय देशों के दलदली क्षेत्रों के निकट लोग अपने मकान स्तंभों पर बनाते हैं, जिससे कि बाढ़ एवं कीड़े-मकोड़ों से बचा जा सकें।
गृह निर्माण सामग्री –
गृह निर्माण के लिए सामान्यतः स्थानीय रूप में मिलने वाली सामग्री का प्रयोग किया जाता है। इनमें पत्थर, लकड़ी, मिट्टी, सरकंडे आदि प्रमुख हैं। वन क्षेत्रों में लकड़ी प्रचुर मात्रा में मिलती है और निर्माण के लिए मुख्यतः लकड़ी का ही प्रयोग किया जाता है। चीन के लोयस क्षेत्र के निवासी कंदराओं में मकान बनाते थे, अफ्रीका के सवाना प्रदेश में कच्ची ईंटों के मकान बनते थे, जबकि ध्रुवीय क्षेत्र में एस्किमो हिम खंडों से अपने इग्लू का निर्माण करते हैं।
सुरक्षा –
बस्ती का निर्माण करते समय सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता है और बस्तियाँ सुरक्षित स्थानों पर ही बनाई जाती है। राजनीतिक अस्थिरता, युद्ध, उपद्रव आदि की स्थिति में गाँवों को सुरक्षात्मक पहाड़ियों एवं द्वीपों पर बसाया जाता था। भारत में अधिकांश दुर्ग उच्च स्थानों एवं पहाड़ियों पर ही स्थित है। नाइजीरिया में खड़े इंसेलवर्ग अच्छी सुरक्षित स्थिति प्रदान करते हैं ।
नियोजित बस्तियाँ-
इन बस्तियों का निर्माण स्वयं ग्रामवासी नहीं करते, बल्कि सरकार द्वारा नियोजित ढंग से – किया जाता है इन बस्तियों के निवासियों को आवास, जल तथा अन्य अवसंरचना आदि सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती है। इथोपिया में सरकार द्वारा ग्रामीणीकरण योजना एवं भारत में इंदिरा गांधी नहर के क्षेत्र में नहरी बस्तियों का विकास इसके अच्छे उदाहरण हैं ।
ग्रामीण बस्तियों की विशेषताएँ-
- ग्रामीण बस्तियों के लोगों का सीधा संबंध भूमि से होता है।
- यहाँ के निवासी प्राथमिक व्यवसाय में संलग्न होते हैं।
- कृषि यहाँ के लोगों का प्रमुख व्यवसाय होता है।
- ग्रामीण बस्ती के मकान स्थानीय उपलब्ध सामाग्री से निर्मित होते है
- ग्रामीण बस्ती के मकानों की कोई सुनिश्चित योजना नहीं होती ये भूमि की उपलब्धता एवं सुविधानुसार बना लिये जाते है ।
- मकानों के प्राय: दो भाग होते हैं। एक परिवार के सदस्यों के रहने के लिये और दूसरा पशुओं के लिये ।
- प्राय: ये बस्तियाँ जल की सुविधा को ध्यान में रख कर बनायी जाती है ।
- गाँव के निवासियों में सहयोग और सहकारिता की भावना अधिक होती है।
- ग्रामीण बस्तियों में जीवन-यापन की सुविधाएँ नगरों की अपेक्षा कम होती है ।
ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप-
ग्रामीण बस्तियों में गलियों, मकानों तथा अन्य कार्यों का विन्यास, इनकी आकृति, पर्यावरण तथा संस्कृति से संबंधित होता है। ग्रामीण बस्तियों का वर्गीकरण कई मापदंडों के आधार पर किया जा सकता है- के आधार पर – इनके मुख्य प्रकार है- मैदानी ग्राम, पठारी ग्राम, तटीय ग्राम, वन ग्राम एवं मरुस्थलीय ग्राम। कार्य के आधार पर कार्य के आधार पर कृषि ग्राम, मछुवारों के ग्राम, लकड़हारों के ग्राम, पशुपालक ग्राम आदि – प्रमुख हैं। बस्तियों की आकृति के आधार पर – इसमें कई प्रकार की ज्यामितिक आकृतियाँ हो सकती है; जैसे कि रेखीय, आयताकार, वृत्ताकार, तारे के आकार की, (T) ‘टी’ के आकार की, चौक पट्टी, दोहरे ग्राम इत्यादि ।
लम्बवत् अथवा रैखिक आकृति (The Linear Pattern ) –
ऐसे गाँवों में मकान किसी सड़क, रेल, नहर या नदी के किनारे पर पाए जाते हैं। ऐसे गाँव में मुख्य गलियाँ सड़क, रेल या नदी आदि के समानान्तर होती है। गाँव की अधिकांश दुकानें इसी मुख्य गली में होती है। यह प्रतिरूप सागरीय तटों पर भी पाया जाता है।
तारक आकृति (Star-like Pattern ) –
कई बार एक गाँव के मध्य से कई सड़कें विभिन्न दिशाओं को जाती हैं या विभिन्न दिशाओं से गाँव में मिलती है। ऐसी स्थिति में मकान सड़कों के किनारों पर बन जाते हैं । इस प्रकार विकसित गाँव की आकृति तारानुमा बन जाती है, जिसे तारक आकृति कहते हैं ।
T- आकार की आकृति –
ये गाँव तिराहों पर बसते हैं, जहाँ पर एक मार्ग दूसरे मार्ग से लगभग समकोण पर आकर मिलते हैं । इन बस्तियों का आकार अंग्रेजी के अक्षर T से मिलता है, जिस कारण इन्हें T – आकार की बस्तियाँ कहते हैं ।
गोलाकार आकृति (Circular Pattern) –
इसे वृत्तीय प्रतिरूप भी कहते हैं । जब कभी किसी झील या तालाब के किनारे मकान बन जाते हैं, तो गाँव की गोलाकार आकृति होती है। यह प्रतिरूप किसी हरे-भरे मैदान में भी मिलता है। ऐसे प्रदेश में गाँव के निवासी अपना मकान जल के समीप बनाना चाहते हैं । पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश में इस प्रकार के गाँव बहुत मिलते हैं । गोलाकार गाँवों में गलियाँ केन्द्र से बाहर की ओर प्रकीर्ण होती है। क्रास की या चौक पट्टी आकृति – इस प्रकार के गाँव उन स्थानों पर बसते हैं, जहाँ मार्ग चारों ओर से आकार एक-दूसरे लगभग समकोण पर मिलते हैं । इन गाँवों में चौमुखी दिशाओं में घर बन जाते हैं ।
युग्म या दोहरी आकृति –
जब कभी कोई सड़क नदी या नहर को पुल द्वारा पार करती है, तो सड़क तथा नदी दोनों के किनारों पर मकान बन जाते हैं । ऐसी बस्ती को युग्म आकृति वाली बस्ती कहते हैं। इसके अतिरिक्त गाँवों के और भी स्वरूप जैसे- अर्द्धवृत्ताकार, तीरनुमा, वाईआकार, क्रॉसआकार एवं अनियमित आकार आदि के भी हो सकते हैं। वर्तमान में अब अनेक देशों में नियोजित (Planned) गाँव भी बसाये जाने लगे हैं, जिन्हें आदर्श गाँव कहे जाते है । जहाँ सभी सुविधाएँ दी जाती है।
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