हुमायूँ की असफलता के कारण क्या थे? – EdusRadio

हुमायूँ की असफलता के कारण

हुमायूँ 1530 ई. में राजगद्दी पर बैठा, वह चारों ओर कठिनाइयों से घिरा हुआ था उसने खुद की कठिनाइयों को और बढ़ा लिया। शेरशाह एक मामूली जागीरदार था। उसकी तुलना में हुमायूँ के पास एक विशाल सेना और विस्तृत साधन होने के बाद भी हुमायूँ असफल रहा। उसकी हुमायूँ की असफलता के कारण इस प्रकार थे ।

  1. साम्राज्य का विभाजन – हुमायूँ ने अपने साम्राज्य को अपने भाईयों में अपनी इच्छा से बाँट दिया था । कामराज को काबुल और कान्धार, अस्करी और सम्भल और हिन्दाल की मेवात आदि प्रदेश दे दिए गए थे। मिर्जा सुलेमान को दशाँ तथा अन्य मुगल सरदारों को भी जागीरे दी गयी थी। इससे राज्य की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी। हुमायूँ अच्छे सैनिकों से भी वंचित हो गया। उसके साम्राज्य की शक्ति घट गयी। साम्राज्य विभाजन हुमायूँ की असफलता का एक महत्वपूर्ण कारण सिद्ध हुआ ।
  2. जन कल्याण की ओर ध्यान न देना- हुमायूँ ने अपनी प्रजा के लिए कोई हित का काम नहीं किया था। इसीलिए वह एक लोकप्रिय शासक नहीं बन पाया था । उसे शत्रुओं के खिलाफ संघर्ष करते समय पूरी तरह से प्रजा का सहयोग नहीं मिला था ।
  3. परिस्थितियों को टालने का प्रयास- हुमायूँ में दृढ़ संकल्प की कमी थी वह परिस्थितियों का मुकाबला करने के बजाय उन्हें टाल देता था । उसने शेरशाह की गतिविधियों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई थी हुमायूँ ने तब बहुत बड़ी गलती की जब बहादुरशाह राजपूतों के खिलाफ लड़ रहा था तब हुमायूँ को उसकी शक्ति को कमजोर कर देना चाहिए था मगर उसने ऐसा कुछ नहीं किया और बहादुरशाह को शक्तिशाली होने का एक मौका दे दिया ।
  4. अफगान शक्ति का उचित मूल्यांकन न करना — हुमायूँ ने अफगानों की बड़ी संख्या, शेर खाँ जैसे – योग्य नेतृत्व में अनेक उत्थान की उपेक्षा की। अफगान शक्ति का उचित अनुमान न कर सकने के कारण उसने शेर खाँ की शक्ति को शीघ्र कुचलने का प्रयास नहीं किया।
  5. बहादुरशाह के प्रति गलत नीति — हुमायूँ ने बहादुरशाह के प्रति भी गलत नीति अपनायी । जिस समय उसने बहादुरशाह के दमन के लिए कूच किया था । उस समय बहादुरशाह चित्तौड़ के राजपूतों से लड़ रहा था । पर हुमायूँ ने उस पर उस समय आक्रमण नहीं किया । अगर हुमायूँ उस समय उस पर आक्रमण कर देता तो वो बहादुरशाह की शक्ति को कुचल सकता था । और इसके साथ-साथ राजपूत उसके मित्र बन जाते और गुजरात पर रोक लग जाती। इसके अलावा उसने गुजरात और मालवा को जीतने के बाद वहाँ अविश्वासी लोगों को प्रशासन सौंप दिया; जिसका फल यह निकला कि जल्द ही बहादुरशाह ने मुगलों से जीते हुए राज्य फिर छीन लिए

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