स्थायी बंदोबस्त क्या है?
स्थायी बंदोबस्त क्या है : स्थायी बन्दोबस्त गवर्नर जनरल लार्ड कार्नवालिस ने 1793 ई. में बंगाल में स्थायी बन्दोबस्त या इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किया । इस व्यवस्था के अन्तर्गत कंपनी द्वारा निश्चित की गई राशि को प्रत्येक जमींदार द्वारा रैयतों से एकत्रित कर जमा करनी होती थी। गाँव से राजस्व एकत्रित करने का कार्य जमीदारों द्वारा नियुक्त अधिकारी ‘अमल’ किया करता था । यदि जमींदार राजस्व की निश्चित राशि को चुकाने में असफल रहते थे तो निश्चित की गई तारीख को सूर्यास्त विधि के तहत राजस्व के बदले उनकी संपत्ति को नीलाम कर दिया जाता था और ऊँची बोली लगाने वाले खरीददार को बेच दी जाती थी। यह बन्दोबस्त कार्नवालिस द्वारा लागू किया गया था ।
स्थायी बन्दोबस्त को लागू करने के उद्देश्य –
- वास्तव में ब्रिटिश प्रशासक इस्तमरारी बन्दोबस्त को कुछ खास उद्देश्यों से लागू करना चाहते थे—
- उन्हें आशा थी कि बन्दोबस्त को लागू कर देने के बाद उन सभी समस्याओं का समाधान हो जायेगा जिनका सामना उन्हें ठेकेदारी व्यवस्था के समय करना पड़ा था।
- 1770 ई. के दशक तक पहुँचते-पहुँचते बार-बार अकालों के पड़ने तथा कृषि उत्पादन में कमी हो जाने के कारण बंगाल की अर्थव्यवस्था संकट में पड़ चुकी थी ।
- कंपनी का विचार था कि खेती व्यापार एवं राज्य के राजस्व संसाधनों के विकास के लिए कृषि में निवेश को प्रोत्साहित करना नितांत आवश्यक था। इस उद्देश्य की पूर्ति संपत्ति के अधिकारों को प्रदान करके तथा राजस्व की माँग को स्थायी रूप से निर्धारित करके ही की जा सकती थी।
- ब्रिटिश प्रशासकों का विचार था कि राजस्व की माँग को स्थायी रूप से निर्धारित कर देने से कंपनी और उद्यमकर्ता दोनों को लाभ होगा। इससे कंपनी को राजस्व की प्राप्ति नियमित रूप से होती रहेगी और उद्यमकर्ता को भी अपने पूँजी निवेश से एक निश्चित लाभ मिलता रहेगा क्योंकि राज्य अपनी माँग में वृद्धि करके उनके लाभ की राशि पर अधिकार नहीं कर सकेगा।
- इस बंदोबस्त द्वारा अधिकारी छोटे किसानों और धनी भू-स्वामियों के एक ऐसे वर्ग का विकास करना चाहते थे जिसके पास सुधार के लिए पूँजी और उद्यम दोनों होंगे।
- ब्रिटिश प्रशासकों को आशा थी कि उनके संरक्षण एवं प्रोत्साहन के कारण कंपनी के प्रति इस वर्ग की स्वामिभक्ति सुनिश्चित बनी रहेगी।
स्थायी बन्दोबस्त की शर्तें –
- स्थायी बन्दोबस्त बंगाल के राजाओं और ताल्लुकदारों (जमींदारों) के साथ किया गया। इसके द्वारा उन्हें भूमि का स्वामी मान लिया गया और भूमि पर उनका पैतृक अधिकार स्वीकार कर लिया गया।
- जमींदारों द्वारा सरकार को दिया जाने वाला वार्षिक लगान स्थायी रूप से निश्चित कर दिया गया। इस प्रकार अब जमींदार ग्राम में भू-स्वामी नहीं अपितु राजस्व संग्राहक मात्र था। उन्हें आदेश दिया गया कि किसानों से लगान रूप में वसूल की गई धनराशि का केवल 1/11 भाग अपने पास रखें और 10/11 भाग सरकार को दें।
- जमींदार भूमि को बेच सकते थे अथवा गिरवी रख सकते थे। जमींदारों द्वारा लगान की निर्धारित धनराशि का भुगतान न किये सरकार उसकी का कुछ भाग बेचकर लगान की वसूली कर सकती थी ।
- इस प्रकार स्थायी बन्दोबस्त के अन्तर्गत सरकार का किसानों के साथ कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं रहा। सरकार ने जमींदारों तथा किसानों के पारस्परिक मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करने का आश्वासन दिया।
स्थायी बन्दोबस्त के गुण (लाभ) –
इस व्यवस्था से निम्नलिखित लाभ हुए-
- इस बन्दोबस्त से सरकार को प्रतिवर्ष लगान निश्चित करने के झंझटों से मुक्ति मिल गई। धन और समय का अपव्यय बच गया।
- सरकार की आय निश्चित हो गई। आय के सुनिश्चित हो जाने के कारण आर्थिक योजनाओं के निर्माण में सुविधा हो गई।
- कंपनी के कर्मचारियों को प्रतिवर्ष लगान की व्यवस्था करने से मुक्ति मिल गई जिसके परिणामस्वरूप प्रशासनिक कार्यकुशलता में वृद्धि हुई।
- चूँकि जमींदारों को अब पूर्व निर्धारित राजस्व का ही भुगतान करना था अतः वे अब उत्पादन में रुचि लेकर अधिक से अधिक उत्पादन का प्रयास करने लगे इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई ।
- स्थायी बन्दोबस्त के कारण अंग्रेजों को जमींदारों के रूप में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के कट्टर समर्थक प्राप्त हो गए, वे ब्रिटिश साम्राज्य के शक्ति स्तंभ ही सिद्ध नहीं हुए अपितु विदेशी शासन विरोधी आन्दोलनों के महान प्रतिरोधक भी बन गए।
स्थायी बन्दोबस्त के दोष (हानियाँ)-
स्थायी बन्दोबस्त में अनेक दोष थे-
- इस बन्दोबस्त में सरकार ने किसानों के हितों का ध्यान नहीं रखा। उनका भूमि पर कोई अधिकार नहीं रहा। वे पूर्ण रूप से जमींदारों पर निर्भर हो गए।
- इससे जमींदारों को भी नुकसान हुआ अनेक जमींदार सरकार को निर्धारित लगान का भुगतान समय पर नहीं कर सके; परिणामस्वरूप उन्हें उनकी भूमि से वंचित कर दिया गया।
- आशा के विपरीत जमींदारों ने कृषि उत्पादन बढ़ाने के कार्यों में कोई विशेष रुचि नहीं ली। अत्यधिक धन संपन्नता ने उन्हें आलसी तथा विलासी बना दिया। उनमें से अधिकांश अनुपस्थित भू-स्वामी बन गए जो बड़े-बड़े नगरों में निवास करते थे तथा जिन्हें किसानों के सुख-दुख की कोई परवाह नहीं थी।
- स्थायी बन्दोबस्त से सरकार को भी हानि हुई। कृषि उत्पादन में वृद्धि होने पर भी सरकार के लगान में कोई वृद्धि नहीं होती थी। जमींदार सरकार को पूर्व-निर्धारित राजस्व का ही भुगतान करता था। उत्पादन वृद्धि का समस्त लाभ जमींदार की जेब में जाता था।
- स्थायी बन्दोबस्त ने सामाजिक असमानता की भावना को बढ़ावा दिया। इसने बंगाल में धनी तथा निर्ध लोगों की दो पृथक-पृथक श्रेणियाँ स्थापित कर दी।
- स्थायी बन्दोबस्त ने भारत में राष्ट्रीय भावनाओं के विकास को ठेस पहुँचाई। इस व्यवस्था ने समाज में जमींदारों के रूप में एक ऐसा शक्तिशाली वर्ग उत्पन्न कर दिया जो अन्तिम समय तक ब्रिटिश सत्ता का परम भक्त एवं कट्टर समर्थक बना रहा।
स्थायी बन्दोबस्त में जमींदारों की असफलता-
कंपनी द्वारा नियुक्त अधिकारी वर्ग ने इस व्यवस्था का आरंभ ज़मींदारों में भू-संपत्ति के प्रति सुरक्षा की भाव लाने सुधार और कृषि निवेश को प्रोत्साहन देने हेतु किया था। ज़मींदारों ने इस व्यवस्था से प्रारंभ में लाभ लिया परन्तु बाद में लापरवाह तथा आलसी हो गए जिससे उन पर राजस्व की रकम बढ़ती गई और अन्ततः उनकी जमीनें नीलाम होती गई । इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू होने के बाद 18 वीं सदी के अन्तिम वर्षों में 75% से अधिक जमींदारियाँ नीलामी द्वारा हस्तांतरित कर दी गई थी। ज़मींदारों की असफलता के कारणों का आकलन करते समय मुख्यतः निम्नवत् आधार सामने आते हैं- राजस्व में निर्धारित की गई राशि बहुत अधिक थी क्योंकि खेती का विस्तार होने पर यह व्यवस्था 1790 के दशक में प्रारंभ की गई थी। इस समय कृषि उपज कीमतें बहुत कम अथवा नीची थी। इससे कृषकों या रैयतों के लिए जमींदारों को उनकी देय राशि का भुगतान करना नामुमकिन हो जाता था । इस स्थिति में जमींदार कृषकों से राजस्व एकत्रित नहीं कर पाता था और कंपनी द्वारा निर्धारित राशि जमा करने में असफल रहता था। इस व्यवस्था में राजस्व जमा करने की निश्चित तिथि निर्धारित थी अतः जमीनें नीलाम हो जाती थी।
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