योजना आयोग क्या है? (Yojana Aayog Kya Hai)
योजना आयोग का गठन 15 मार्च, 1950 को किया गया था। 1 जनवरी, 2015 से योजना आयोग का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया है तथा इसके स्थान पर नीति आयोग का गठन किया गया है। भारत के प्रधानमंत्री को आयोग का पदेन अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन साधारणतया काम-काज एक पूर्णकालिक उपाध्यक्ष की देख-रेख में होता था ।
65 वर्ष पुराने योजना आयोग का अस्तित्व समाप्त हो गया और इसके स्थान पर नीति आयोग का गठन किया गया है। यह नई संस्था जिसे राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान का नाम दिया गया है। 1 जनवरी, 2015 से अस्तित्व में आ गई है। नीति आयोग के नाम से जाना जा रहा यह आयोग प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सरकार के थिंकटैंक (बैंकिक संस्थान) के रूप में कार्य करेगा तथा केन्द्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों के लिए भी नीति निर्माण करने वाले संस्थान की भूमिका भी निभाएगा। केन्द्र व राज्य सरकारों को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के महत्वपूर्ण मुद्दों पर राजनीतिक व तकनीकी सलाह भी यह देगा। यह आयोग पंचवर्षीय योजनाओं के भावी स्वरूप आदि के संबंध में सरकार को सलाह देगा।
सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों तथा केन्द्रशासित क्षेत्रों के उपराज्यपालों को इसकी अधिशासी परिषद् में शामिल किया गया । इस प्रकार नीति आयोग का स्वरूप योजना आयोग की तुलना में अधिक संघीय बनाया गया है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले इस आयोग में एक उपाध्यक्ष व एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी का प्रावधान किया गया है।
योजना आयोग के तीन कार्य
योजना आयोग के तीन कार्य निम्न थे –
- देश के भौतिक, पूँजीगत एवं मानवीय संसाधनों का अनुमान लगाना ।
- राष्ट्रीय संसाधनों के अधिक से अधिक प्रभावी एवं संतुलित उपयोग की योजना तैयार करना ।
- योजना के विभिन्न चरणों का निर्धारण करना एवं प्राथमिकता के आधार पर संसाधनों का आबंटन करना ।
- आर्थिक विकास में बाधक परिस्थितियों एवं कारणों को दूर करना ।
- योजना के प्रत्येक चरण की प्रगति की समीक्षा करना तथा सुधार हेतु सुझाव देना।
राष्ट्रीय विकास परिषद्
मार्च, 1950 में योजना आयोग को स्थापित करने के बाद यह अनुभव किया गया कि विधि राज्य सरकारों और योजना आयोग के बीच एक तालमेल एजेन्सी स्थापित की जाए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए 6 अगस्त, 1952 को राष्ट्रीय विकास परिषद् का गठन किया गया। राष्ट्रीय विकास परिषद् एक गैर-संवैधानिक निकाय था, जिसका गठन आर्थिक नियोजन हेतु
राज्यों और योजना आयोग के बीच सहयोग का वातावरण बनाने के लिए किया गया था। प्रधानमंत्री के पास ही राष्ट्रीय विकास परिषद् के अध्यक्ष का दायित्व था।
राष्ट्रीय विकास परिषद् के प्रमुख कार्य निम्न थे—
- योजना आयोग द्वारा तैयार की गई योजना के प्रारूप का अध्ययन करके उसे अंतिम रूप देना और उसे स्वीकृति प्रदान करना।
- योजना में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सुझाव देना ।
- योजना के संचालन का समय-समय पर मूल्यांकन करना।
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